जापान की याद
चीन के हालात देखकर लोगों को जापान की याद आ रही है। एक जमाने में जापान की इकॉनमी रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रही थी और माना जा रहा था कि अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। लेकिन 1990 के दशक में जापान की इकॉनमी में ठहराव आ गया। हालांकि तब तक जापान हाई-इनकम वाले देशों की श्रेणी में पहुंच चुका था और अमेरिका के लेवल के करीब था। आज चीन के हालात भी कमोबेश वैसे ही हैं। अंतर इतना है कि चीन अब तक मिडल इनकम पॉइंट से थोड़ा ही ऊपर पहुंचा है। देश की इकॉनमी में सुस्ती के कई कारण माने जा रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण रियल एस्टेट सेक्टर का क्राइसिस है। साथ ही निवेश और खपत में असंतुलन, सरकारी कर्ज में बेतहाशा बढ़ोतरी और समाज एवं बिजनस पर सरकार का कड़ा कंट्रोल भी इसके लिए जिम्मेदार है।चीन का वर्कफोर्स और कंज्यूमर बेस सिकुड़ रहा है जबकि रिटायर लोगों की संख्या बढ़ रही है। चीन की समस्याएं जापान से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हैं। समस्या यह है कि चीन में लोग और कंपनियां कर्ज लेने और इनवेस्टमेंट करने के बजाय कर्ज चुकाने में लगे हैं। इससे डिप्रेशन की शुरुआत होती है। देश ने इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जमकर निवेश किया है लेकिन इससे ग्रोथ के बजाय कर्ज बढ़ा है। दुनियाभर के बड़े देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करने में लगे हैं। लेकिन चीन इस मामले को सुलझाने के बजाय उनसे उलझ रहा है। इससे लगता है कि चीन की स्थिति में हाल-फिलहाल सुधार आने वाला नहीं है।