क़मर सिद्दीक़ी
*सिर्फ़ पत्रकार क्यों..?*
उज्जैन में कुछ पुराने अपराधियों पर नकेल कसने के बाद बताया गया कि,इन्होंने पत्रकार के चोले में भी अपराध को अंजाम दिया था। पुलिस की दलील बड़ी ही मासूमियत वाली है, कि इनके पास पत्रकार होने का कोई रजिस्ट्रेशन भी नहीं पाया गया। गोया रजिस्ट्रेशन के बाद ये कृत्य जायज़ माना जाएगा .?,और जो मान्यताप्राप्त पत्रकार हैं,जब वो कोई कांड करते हैं,तो क्या पुलिस उनके साथ कोई रियायत करती है.? यदि कोई अपराधी पत्रकार बन जाए तो यह बेशक़ गुनाह है,और अगर पत्रकार अपराधी बन जाए तो..? एक बिका,और गिरा हुआ पत्रकार एक दुर्दांत अपराधी से कई गुना घातक होता है। वैसे तो समय के साथ हर व्यवसाय के मूल्यों में गिरावट आई है,पर वो समाज में इतना प्रभावशील नहीं होते,जो दिखता है,वो बिकता है। और फिर चौथा खंभा भी तो है। सरकार की गलत नीतियों का समर्थन, अलग2 क्षेत्रों के माफियाओं की दलाली,समाज में वैमनस्य फैला देश को कमज़ोर करने जैसे अक्षम अपराधों के खिलाफ क्या सज़ा होगी.? सज़ा नहीं ऐसे लोगों को अवार्ड दिए जाते हैं। और जो सच्चाई के साथ खड़े होने का प्रयास करेंगे ,उनकी टांगों में सरकारी रस्सी का फंदा डाल इतने झटके से खींचा जाता है,कि फिर उठने की हिम्मत बाक़ी नहीं रहती,और इस खींचने के काम में अपने ही समाज के लोग उनकी मदद कर सरकारी पुण्य कमाते हैं। कल्पना कीजिये,अगर ऐसे समय में इसी समाज के चार हाथ उनका सहारा बन जाते,तो न तो वो गिरता,और न ही पत्रकारिता।
वैसे इतना सब करने के बाद भी ये पत्रकारगण उन तथा कथित राष्ट्रीय पत्रकारों से बेहतर हैं,जो देश की दिशा और दशा बदलने में अहम भूमिका निभाते हैं ।
*तो,बजाते रहो .!*
पुराना चावल,पुराना घी,पुरानी शराब,पुराना शहद, के बाद इस फ़ेहरिस्त में एक और नाम जुड़ गया, "पुराना सीएम"। रेकॉर्ड,इतिहास इसमें बदलाव तो होते ही रहते हैं। सत्ता हस्तांतरण के बाद ऐसे नज़ारे आज तक नहीं दिखे,पर अब तो नित्य नए तमाशे सामने आ रहे हैं। कहते हैं पुराना,पुराना ही होता है। अब देखिए न मजबूरन उसी पुराने की चौखट पर जाना पड़ा, वो भी सफाई देने कि,आप अब भी मेरे लिए भाई साहब ही हैं,और कमल नयन भी। आप क्यों बैंड बाजे वालों की आड़ में मेरी बजाने पर तुले हो.? ढोल ढमाका बजेगा तो चलेगा,पर हमारी ..? ये बजाने बजवाने का सिलसिला ठीक नहीं, क्यों कि ऐसी आवाज़ों से हमारे कामों में बाधा उत्पन्न होने की आशंका है। कभी 2 परिंदा अपने आप को इतना मजबूत कर लेता है कि,पर कतरे जाने के बाद भी काम चलाऊ उड़ान भर लेता है।
"मोहन प्यारे" की हालत भी अनारकली जैसी हो गई है। कभी अकबर ने कहा था " अनारकली सलीम तुझे मरने नहीं देगा,और हम तुझे जीने नहीं देंगे"।