जिस तरह एक अकल्पनीय घटना उज्जैन महाकाल मंदिर में घटी इसको हल्के में लेना मतलब सरकार को अपने फेलयुर होने का सबूत देना है।जरा सोचिए वो कौन शख्स होगा जिसने केमिकल युक्त गुलाल आरती पर फेंकी क्या आस पास मौजूद लोगों ने नहीं देखा होगा कि किसकी गुलाल से आग भवकी?अब बात अध्यात्म की कि जाए तो भक्तगण इसे महाकाल के क्रोध को बता रहे अब महाकाल का क्रोध जो एक इशारा मात्र माना जाय इससे सचेत होने की जरूरत है क्या?बिल्कुल है क्योंकि जिस तरह उज्जैन की हालत है उसको किसी से छुपाया नहीं जा सकता लाखों करोड़ों की आय वाले मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था क्या इतनी कमजोर हो गई या उज्जैन में एक ही राजा रुक सकता वाली मान्यता का असर दिखने लगा क्योंकि मुख्यमंत्री भी एक राजा होता है और मोहन यादव ने कुलपति के बंगले को अपना ठिकाना बना लिया कुछ ज्योतिष वालो ने कहा कि कोई दिक्कत नहीं है मोहन यादव रात रुक सकते है ।
जो भी हो बहरहाल जनहित में सरकार को और मंदिर प्रबंधन को सोचना चाहिए विचार करना चाहिए।।