राजनीति में बेशक कोई किसी का सगा नहीं होता पर इस कदर भी राजनीतिक चालों को नहीं चलना चाहिए कि अपने स्वार्थ के लिए भाई से भाई को जुदा कर दिया जाए।जब के पी यादव ने धूल चटाई थी तो के पी की टिकिट काटकर सिंधिया को टिकिट क्यों दी क्या
सिंधिया को कही और से नहीं लड़ा सकते थे क्या राज्यसभा से नहीं भेज सकते थे पर ऐसा नहीं करना चाहते थे सिंधिया ओर उनको तो के पी से इंतकाम लेना था अपना पावर दिखाना था कि कैसे राजा महाराज की चलती है उनके सामने कोई नहीं लगता और बेचारे मेहनती जनता से चुने युवा नेता का केरियर खत्म कर दिया ।क्या मुख्यमंत्री बने मोहन यादव नहीं अड़ सकते थे जब इतने पावर में थे कि हमारी समाज का जननेता के पी यादव है उसकी टिकिट न काटी जाये पर हिम्मत नहीं हुई किसी माई के लाल में।
पर जिस तरह गुना की मिट्टी और जल पीकर बड़े हुए मतदाता अब सिंधिया के साथ साथ उन सबको सबक सिखा सकते है और ये बता सकते है कि हम लोग अपना नेता चुनते है किसी दलबदलू स्वार्थी महाराज को नहीं अब चाहे पैर पड़ो य लोट जाओ फिर भी जनता में आक्रोश साफ साफ दिखाई दे रहा है गुना की जनता में भले ही के पी यादव चुनाव नहीं लड़ रहे पर जनता के पी यादव को ही अपना नेता मानती ओर खुलकर कह रही गलत किया बेईमानी की एक महाराज के कारण हमारे बीच के युवा नेता को गड़ा दिया।
जनता वो दिन भी याद करती है जब सिंधिया कांग्रेस में थे तो कैसे उनका साथ देती थी जनता अब वैसे ही कांग्रेस का साथ देगी चाहे पूरा खानदान निकल जाए महाराज का।।
अंदर खाने भाजपा भी लगी है निपटाने में।।