प्रवीण चौहान।
विगत दिनों देश की सर्वोच्च अदालत ने नौकरशाही पर सवाल खड़ा किया था। नौकरशाही एवं अफसरशाही के कामकाज एवं तौर-तरीकों पर कटाक्ष कर इसमें व्यापक सुधार एवं बदलाव के लिए सख्त एवं तल्ख हिदायत भी दी थी। लेकिन तमाम हिदायतों के बावजूद भी देश और प्रदेश की नौकरशाही बेलगाम होती नजर आ रही है।
आज बात सूबे की करते हैं... यहां के हालात तो इतने बदतर और बुरे हो चुके हैं कि एनजीटी को प्रदेश के मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के लाड़ले इकबाल सिंह बैंस संतोष जनक जवाब नहीं प्रस्तुत कर पाए... इस पर कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि....
ऐसे राज्य का भगवान ही मालिक है, जिसका मुख्य सचिव फाइलें देखे पढ़े बिना ही अदालत में शासन का पक्ष रखने चला आए। क्या आपके अधीनस्थों ने भी आपको इस संबंध में कोई ब्रीफिंग नहीं दी?
एनजीटी ने राज्य शासन की ओर से कलियासोत बफर में अतिक्रमण को लेकर पेश की गई रिपोर्ट पर तारीख और हस्ताक्षर नहीं होने पर लताड़ लगाई। यूं तो शिवराज की नौकरशाही के हाथों कठपुतली बनके रहना समझ से परे हैं लेकिन उससे भी ज्यादा अचरज वाली बात तो यह भी है कि चुनाव आयोग के तीन साल के नियमों को दरकिनार करके प्रदेश के सर्वोच्च् पद पर मुख्य सचिव पिछले तीन साल से डेरा जमाए बैठै है। और तो और शिवराज सिंह खुद दिल्ली जाकर उनका एक्सटेंशन ले आए थे 6 माह का। क्या शिवराज का आत्मविश्वास डगमगा गया है या यह समझें की इस बार के चुनाव में शिवराज ने कांग्रेस को वाकओवर दे दिया है जो नौकरशाही के भरोसे चुनाव जीतने में विश्वास जताए जा रहे है...
इससे बडी बात क्या होगी कि एनजीटी ने यहां तक कह दिया कि...
हमें उम्मीद थी कि मुख्य सचिव को बुलाएंगे तो इस केस को शासन में गंभीरता से लेगा। सीएस ने इस बीच कहा कि वे आज मानसिक रूप से सुनवाई के लिए तैयार नहीं है, इसलिए दूसरी तारीख दे दी जाए। एनजीटी ने कहा- हमें लगता है कि मप्र शासन का पूरा सिस्टम ही इनकॉम्पिटेंट (अक्षम) है, यही हाल आपके सरकारी वकीलों का भी है। जो सुनवाई के दौरान ठीक से पैरवी करने के बजाए सिर्फ तारीख बढ़ाने के लिए वक्त मांगते रहते हैं।
मुख्य सचिव की तो धमक ऐसी है कि मुख्यमंत्री के अलावा वह किसी की नहीं सुनते अब ये बात अलग है कि शिवराज कैबिनेट में शामिल सिंधिया खेमे के मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया और सुरेश धाकड़ पहले ही ये बात स्पष्ट तौर पर कह चुके हैं कि मुख्य सचिव उनके काम को तवज्जो नहीं देते हैं और उनके काम अटके हुए हैं लेकिन उसका असर दिखाई नहीं दिया। शिवराज और उनके ईर्द गिर्द की नौकरशाही का अगर शुरू से आंकलन किया जाए तो बडा ही नाटकीय अंदाज में यह दिखता है...
अब शिवराज के चौथे टर्म की बात करें तो जनता के सामने भरे मंच पर नौकरशाही के प्रति उनका सार्वजनिक रवैया तल्खी वाला ही रहा है. कई लोग इस बात को शिवराज की राजनीतिक शैली में परिवर्तन के रूप में भी देख भी रहे थे.. लेकिन, यह परिवर्तन हकीकत में उतना असरकारी नजर नहीं आ रहा, जितना वह मंचीय भाषणों में आग उगलता नजर आ रहा था... वह एक नाटक थो जो भरपूर कलाकारी के साथ शिवराज खेल गए... लेकिन जनता हकीकत से रूबरू हो गई है... वह शिवराज के कथनी और करनी का अंतर जान चुकी है... शिवराज सिंह ने जिस तरह से जनता के सामने नौकरशाहों पर धौंस दिखाकर जनता सेे हमदर्दी बटोरी और अब ऐन चुनाव के वक्त पर वहीं नौकरशाही बेलगाम होकर जनता को धौंस दिखा रही है... यह नाटक जनता भली भांति समझ चुकी है कि उनको मूर्ख बनाया जा चुका है और बनाया जा रहा है...
प्रदेश में नौकरशाही एवं अफसरशाही पर बात पर विचार करना इसलिए भी अधिक जरूरी है, क्योंकि नौकरशाही एवं अफसरशाही ने प्रदेश में केवल विकास एवं सुधार का मार्ग ही बाधित नहीं किया है बल्कि लोकतंत्र को भी अपने कब्जे में लेकर सिस्टम को ही अपने गिरफ्त में ले रखा है। सरकार की नाकामियों के कई लोग शिकार हो रहे है... मगर व्यवस्था ऐसी कि किसी अधिकारी, कर्मचारी का कोई बाल बांका नहीं कर पा रहा है। सीधी पेशाब मामले में खुलकर प्रशासन की लापरवाही सामने आने के बावजूद शिवराज सरकार मूकदर्शक बन नौकरशाही की कठपुतली मात्र बनकर रह गए ... प्रदेश के हालात तो यह है कि यहां नौकरशाहों के ने मुख्यमंत्री ही नहीं वरन् लोकत़ंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया की निष्पक्ष भूमिका को भी गिरफ्त में ले रखा है... जनसंपर्क विभाग खुलकर बड़े बडे मीडिया हाउस को मुफ्त की रेवडियां खिलाकर पोषित करने का कार्य बखूबी कर रहा है... इसकी भी चाकचौबंद व्यवस्था शिवराज ने भली भांति कर दी है... प्रदेश मेें सबसे चर्चित और धुआंधार अफसर को जनसंपर्क का मुखिया बनाकर यह काम सौंप दिया है...जबकि वहां पहले से ही एक ईमानदार और कर्मठ अफसर मौजूद था जो मीडिया को मुफ्त की रेवडिय़ों के इस रवायत को लगाम कस चुका था... अंधेरगर्दी को प्रकाश में लाने का काम एक आईपीएस ने बड़ेे ही दिलेरी के साथ कर दिखाया था... लेकिन शिवराज की जीत को आश्वतस्त करने का सुनहरा सपना दिखा रही नौकरशाही ने इस विभाग को भी डस लिया और अपने वश में कर लिया... मीडिया की इस दोहरी भूमिका की वजह से गड़बडिय़ां, लीपापोती या लापरवाही उजागर नहीं हो पाती है... वह विज्ञापन के बडे बडे पेजों में कही दब जाती है... यदि समय रहते इस पर गंभीर विमर्श नहीं हुआ तो प्रदेश में लोकतंत्र नाम के लिए रह जाएगा ओर यहां सिर्फ एलीट क्लास का बोलबाला चलेगा। प्रदेश में जितना निराश जनप्रतिनिधियों ने नहीं किया उससे कहीं अधिक नौकरशाहों की प्रताडना से आम आदमी प्रताडित हो रहा है...